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Friday, 10 May 2024

हाकी के जादुगर मेजर ध्यानचंद के गुरु मेजर बाले तिवारी पर लिखी पुस्तक *थपकीका विमोचन*

नई दिल्ली। जब भी हॉकी की बात होती है तो मेजर ध्यानचंद का नाम बरबस जुबान पर आ जाता है। मानो भारतीय हॉकी का पर्याय ही ध्यानचंद है। सच मानिए यदि ध्यानचंद नहीं होते तो सम्भवतः भारतीय हॉकी भी नहीं होती। नहीं होती से तात्पर्य है कि उसका स्वर्ण युग नहीं होता। ध्यानचंद हॉकी के स्वर्ण रहे हैं। और कहते हैं सोना जितना तपेगा वो उतना ही निखरेगा। तपाने वाला जौहरी जानता है कौन सा स्वर्ण कितना तप कर कितनी चमक या दमक बिखेर सकता है। तो ध्यानचंद जैसे स्वर्ण को तपाकर निखारने वाले उसी जौहरी सूबेदार मेजर बाले तिवारी के जीवन पर आधारित ,,थपकी,, नामक पुस्तक का विमोचन शनिवार 03 सितंबर 2022 को प्रैस क्लब आफ इंडिया दिल्ली में संपन्न हुआ. इस दौरान समारोह के मुख्य अतिथि विजय गोयल ( पूर्व खेल मंत्री), अशोक ध्यानचंद ( पूर्व हॉकी ओलंपियन), विशिष्ठ अतिथि डॉ. अनीता आर्या ( पूर्व सांसद), रमिंदर सिंह (संस्थापक एवं सीईओ, सेलिबफी एप), राकेश प्रजापति, शैलेंद्र कुमार, राकेश तिवारी, भोलानाथ तिवारी, हरि प्रसाद मिश्र, अशोक पाठक, अशोक दीवान, नवीन कुमार, अरविंद छाबड़ा व अन्य गणमान्यों की मौजूदगी मे दीप प्रज्जवलित कर समारोह का शुभारंभ किया।


इस दौरान सभा को संबोधित करते हुए विजय गोयल ने कहा कि यह हम सबके लिए गर्व की बात है कि पुस्तक के लेखक वरुण तिवारी और ब्रजबाला ने अपने पडदादा सूबेदार मेजर बाले तिवारी के व्यक्तित्व को थपकी के जरिये लोगों के सामने लाने का जो सुंदर प्रयास किया है उसके लिए मैं उन्हें शुभकामनाएं देता हूँ. आदरणीय बाले तिवारी जी ने हम सबको ध्यानचंद रूपी जो हीरा दिया है हम सब उसके आभारी रहेंगे. अशोक ध्यानचंद ने कहा कि आदरणीय बाले तिवारी के बिना ध्यानचंद का जीवन अधूरा है. बाले तिवारी के प्रोत्साहन रूपी थपकी से वह एक अच्छे खिलाडी के रूप में निखर कर सामने आये और उनके मार्गदर्शन में खेलते हुए एक बेहतरीन खिलाड़ी बने। ध्यान सिंह को खेल की एक-एक बारीकी से रूबरू कराया सूबेदार मेजर बाले तिवारी ने। सूबेदार मेजर बाले के जीवन पर आधारित पुस्तक "थपकी" का लोकार्पण देश-दुनिया के तमाम हॉकी खेल प्रेमियों के लिए एक सौगात होगी। "थपकी" बतौर लेखक मेरी ( वरुण तिवारी) की पहली पुस्तक है।

जब भी हॉकी की बात होती है तो मेजर ध्यानचंद का नाम बरबस जुबान पर आ जाता है। मानो भारतीय हॉकी का पर्याय ही ध्यानचंद है। सच मानिए यदि ध्यानचंद नहीं होते तो सम्भवतः भारतीय हॉकी भी नहीं होती। नहीं होती से तात्पर्य है कि उसका स्वर्ण युग नहीं होता। ध्यानचंद हॉकी के स्वर्ण रहे हैं। और कहते हैं सोना जितना तपेगा वो उतना ही निखरेगा। तपाने वाला

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