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Monday, 20 May 2024

महान अभिनेता और परिपक्व लेखक थे बलराज साहनी

बलराज साहनी आज महान अभिनेता बलराज साहनी का जन्मदिन है! यह बताने की जरूरत नहीं कि वह कितना महान अभिनेता था! अगर अभिनय का दूसरा नाम बलराज साहनी हों तो अतिशयोक्ति नहीं होगी!


आज ही के दिन 1913 में रावलपिंडी (अब पाकिस्तान) में जन्मे युधिष्ठर साहनी ने पंजाब विश्वविद्यालय, लाहौर से अंग्रेजी में एमए की उपाधि प्राप्त की। और फिर वहां से हिंदी में ग्रेजुएशन किया! इसी बीच उनकी शादी दमयंती साहनी से हो गयी.


बलराज साहनी 1930 में बंगाल चले गए और शांतिनिकेतन में रवीन्द्रनाथ टैगोर के विश्वभारती विश्वविद्यालय में अंग्रेजी और हिंदी के शिक्षक के रूप में काम करने लगे। यहीं पर दमयंती ने अपने बेटे पृक्षत साहनी को जन्म दिया, जो आज एक लोकप्रिय अभिनेता हैं।


1939 में वे लंदन चले गये और बीबीसी में हिन्दी उद्घोषक के रूप में काम किया।


उन्हें शुरू से ही अभिनय का शौक था और वह स्कूल और कॉलेज में अक्सर थिएटर किया करते थे। 1943 में भारत लौटने के बाद वह मुंबई आ गये और इप्टा से जुड़ गये और थिएटर करने लगे।


बलराज साहनी की पहली फिल्म 1946 में 'इंसाफ' थी। 1953 में बिमल रॉय की फिल्म 'दो बीघा ज़मीन' ने साबित कर दिया कि बलराज साहनी एक परिपक्व अभिनेता थे! फिल्म ने कान्स फिल्म फेस्टिवल में अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार जीता! उन्होंने बिंदिया, सीमा, सोने की चिड़िया, सट्टा बाजार, भाभी की चूड़ीयां, कठपुतली, लाजवंती और घर संसार जैसी फिल्मों में हीरो की भूमिका निभाई, जिसमें उस समय की बड़ी अभिनेत्रियां पद्मिनी, नूतन, नरगिस, मीना कुमारी और वैजयंतीमाला थीं हीरोइनें थीं।


लगभग 100 फिल्मों में काम कर चुके बलराज साहनी ने चरित्र कलाकार के रूप में भी शानदार अभिनय किया है! नील कमल, घर-घर की कहानी, दो रास्ते, वक्त, हमराज़, हकीकत, हंसते ज़ख्म, एक फूल दो माली, पराया धन, अमानत और संघर्ष उनकी कुछ यादगार फिल्में हैं। उन पर फिल्माए गए गाने 'ऐ मेरी जोहरा जबीं...(वकात)' और 'बाबुल की दुआवां लेती जा.. (नील कमल)' आज भी बेहद लोकप्रिय फिल्मी गाने हैं!


बलराज साहनी ने दो पंजाबी फिल्मों 'नानक दुखिया सब संसार' और 'सतलज दे कंडे' में भी अहम भूमिकाएं निभाईं।


एक लेखक के रूप में बलराज साहनी ने ज्यादातर पंजाबी में लिखा। पंजाबी किताबों में 'मेरा पाकिस्तानी सफरनामा', 'मेरा रूसी सफरनामा', 'एक सफर एक दास्तान' और 'मेरी फिल्मी आत्मकथा' उस समय सबसे ज्यादा बिकने वाली किताबें थीं। 'मेरी फिल्मी आत्मकथा' का हिंदी अनुवाद भी बेस्ट सेलर रहा! 'रूसी यात्रा वृतांत' पर उन्हें इंडो-सोवियतलैंड नेहरू पुरस्कार भी मिला! 2013 में उनके 100वें जन्मदिन पर भारत सरकार द्वारा उनके सम्मान में एक डाक टिकट जारी किया गया था।


13 अप्रैल 1973 को मुंबई में दिल का दौरा पड़ने से उनकी मृत्यु हो गई।

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